Wednesday, August 22, 2012

मामूली सा झोंका



जलाया तो खुद अपने हाथों से था

नदिया में लेकिन बहा ना सका

राख ठंडी हो यही इंतज़ार रहा

अंगारों को लेकिन बुझा ना सका...



लड़ता मौत से तो शायद जी भी जाता

किस्मत को अपनी आज़मा ना सका

ले उड़ा राख भी एक मामूली सा झोंका

तेज़ हवाओं को अपनी कहानी...बता ना सका.....



1 Comments:

At 10:42 PM, March 22, 2014, Blogger shrurib said...

very nice ...

 

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